
इंदौर, भारतीय ज्ञान परंपरा विश्व की सनातनी परंपरा है, जिसका ठोस आधार है। विज्ञान से सालों पहले भारतीय ज्ञान परंपरा ने विभिन्न क्षेत्रों के ज्ञान को स्थापित कर दिया था। भारतीय ज्ञान परंपरा वास्तव में भारतीयों को आत्म सम्मान और गौरव दिलाने वाली परंपरा है। महान वैज्ञानिक अब्दुल कलामजी को तकनीक का ज्ञान भी भारतीय ज्ञान परंपरा से ही मिला। हमारे महान ज्ञान को खत्म करने के लिये भारत पर लगातार हमले होते रहे। पहले पुस्तकों को जलाया गया और बाद में भाषा से दूर कर भारतीय ज्ञान परंपरा को खत्म करने को कोशिश की गयी, लेकिन तमाम प्रयासों के बाद भी भारतीय ज्ञान परंपरा आज भी जिंदा है। भारतीय ज्ञान परंपरा के सहारे ही भारत का विश्व गुरू बनने का सपना पूरा होगा।
उक्त विचार प्रसिद्ध शिक्षाविद् और शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, गुजरात के शोध प्रकल्प के संयोजन डा. आशीष जनकराय दवे ने व्यक्त किये। श्री दवे सोमवार को भारतीय ज्ञान पंरपरा विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला को सम्बोधित कर रहे थे। देवी अहिल्या यूनिवर्सिटी के पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला में आयोजित कार्यशाला का आयोजन देवी अहिल्या यूनिवर्सिटी के दीनदयाल उपाध्याय कौशल केंद्र, शोध मालवा और रिसर्च फाउंडेशन आॅफ इंडिया के संयुक्त तत्वावधान में किया गया। कार्यशाला को सम्बोधित करते हुए श्री दवे ने कहा, भारतीय ज्ञान परंपरा एक सनातनी परंपरा है और जो सनातनी है, वह अविनाशी भी है। ऐसे में भारतीय ज्ञान परंपरा को खत्म नहीं किया जा सकता है। यही कारण है कि नई शिक्षा नीति में इस पंरपरा को शामिल किया गया है। अंग्रेजों को हमारे ज्ञान की गहराई का आभास हो गया था, इस कारण ही इसे खत्म करने के लिए तमाम प्रयास किये गए। हमें हमारी भाषा से दूर किया गया ताकि हम अपनी ज्ञान परंपरा को नहीं जान पाये। इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिये। ऐसा कोई भी क्षेत्र नहीं है, जिसमें भारतीय ज्ञान परंपरा नहीं हो। नाव से लेकर विमान बनाने, सर्जरी से लेकर मकान बनाने तक में भारतीय ज्ञान ही विश्व में आगे है। आज के आधुनिक समय में जब प्रबंधन का महत्व है, जिसे भारतीय ज्ञान में सदियों पहले स्थापित किया गया है। प्रबंधन का मूल आधार भारतीय ज्ञान ही है। ग्रहों की स्थिति और स्थान की भविष्यवाणी हमारे पंचांग में सदियों पहले की, जबकि विज्ञान ने सालों बाद इसकी गणना की। श्री दवे ने कहा, भारतीय ज्ञान परंपरा का ज्ञान नहीं होने के कारण ही हम खुद को दोयम दर्जे का मानते है, जबकि ऐसा नहीं है। भारतीय ज्ञान परंपरा एक महान परंपरा थी, महान परंपरा है और महान परंपरा रहेंगी। जरूरत केवल भारत के लोगों को इसे जानने और उस पर गर्व करने की है। मुख्य अतिथि के रूप में अभ्युदय यूनिवर्सिटी, खरगोन के कुलगुरू डा. प्रमोद शर्मा उपस्थित थे। आपने कहा, शिक्षा में ही ज्ञान निहित है और शिक्षा से ही भारतीय ज्ञान परंपरा का मार्ग सशक्त होता है। मैकाले शिक्षा व्यवस्था को भारत में लाकर अंग्रेजों ने भारतीय ज्ञान परंपरा को खत्म करने की कोशिश की। यह भारत के लिये काले अध्याय जैसा है, जिसके कारण हमारी भारतीय ज्ञान आधारित शिक्षा पूरी तरह से प्रभावित हुयी। आज जरूरत है कि भारतीय ज्ञान परंपरा आधारित शिक्षा का महत्व हम सभी समझे। मुख्य अतिथि डीडीयुके की निदेशक डा. रेखा आचार्य ने कहा, भारतीय ज्ञान परंपरा ने विश्व
को कई क्षेत्रों का मूल ज्ञान दिया है। भारतीय ज्ञान परंपरा सभी को जोड़ने की बात करती है, जो विश्व का कोई अन्य देश नहीं करता है। तोड़ने का ज्ञान हमारी परंपरा ही नहीं है और यही दर्शन भारतीय ज्ञान परंपरा में भी देखने को मिलता है। वास्तव में भारतीय ज्ञान परंपरा अहिंसा, त्याग और सत्याग्रह का संदेश देता है। विश्व का ऐसा कोई विषय क्षेत्र नहीं है, जहंा भारतीय ज्ञान परंपरा आगे नहीं हो। शिक्षाविद् डा. अजय जैन ने कहा, नई शिक्षा नीति में भारतीय ज्ञान परंपरा को जोड़कर शिक्षा व्यवस्था में सुधार की दिशा में नया कदम उठाया गया है, जिसके सार्थक परिणाम देखने को मिल रहे है। जरूरत इस बात की है कि हम सभी इस ज्ञान को जाने और उसका महत्व समझे। यह आयोजन दीनदयाल उपाध्याय कौशल केंद्र – देवी अहिल्या विस्वविद्यालय इंदौर, शोध मालवा तथा रिसर्च फाउंडेशन ऑफ इंडिया के संयुक्त तत्वाधान में सम्पन हुआ।
आरंभ में सरस्वती पूजन और दीप प्रज्जवलन अतिथियों ने किया। स्वागत डा.मनीष काले, डा. प्रकाशिनी तिवारी और सौरभ पारिख ने किया। संचालन डा. प्रकाशिनी तिवारी और स्वर्णिका भाटी ने किया। आभार शिक्षाविद् विशाल पुरोहित ने माना।









